मार्को रुबियो ने पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो से एक बैठक में कहा कि पनामा नहर क्षेत्र पर चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करना चाहिए। उन्होंने पनामा को चेतावनी दी कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो ट्रंप प्रशासन आवश्यक कदम उठाने को तैयार होगा।नहर की मौजूदा स्थिति को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार नए फैसले ले रहे हैं। कनाडा, मैक्सिको और चीन पर टैरिफ लगा दिया गया है। ट्रंप के वादे के मुताबिक अमेरिका की नजरें पनामा नहर पर लगी हुईं हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इसके संकेत भी दे दिए हैं। रविवार को रुबियो ने पनामा का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने पनामा नहर को अमेरिका को सौंपने की मांग की।
मार्को रुबियो ने रविवार को पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो से एक बैठक में कहा कि पनामा को पनामा नहर क्षेत्र पर चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो ट्रंप प्रशासन आवश्यक कदम उठाने को तैयार होगा। रुबियो ने मुलिनो को बताया कि ट्रंप कहते हैं कि नहर क्षेत्र में चीन की उपस्थिति अमेरिका के साथ 1999 में की गई संधि का उल्लंघन कर सकती है। अमेरिकी विदेश विभाग ने बताया कि बैठक में विदेश सचिव रुबियो ने स्पष्ट किया कि नहर की मौजूदा स्थिति को स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसमें तत्काल परिवर्तन नहीं किया गया तो अमेरिका को समझौते के तहत अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे।
वहीं पनामा के राष्ट्रपति मुलिनो ने बैठक को सम्मानजनक और सकारात्मक बताया। उन्होंने कहा कि रुबियो ने नहर पर कब्जा करने या बल प्रयोग करने की कोई धमकी नहीं दी। राष्ट्रपति ने कहा कि पनामा चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के साथ अपने समझौते को नवीनीकृत नहीं करेगा। पनामा चीन की उस पहल में शामिल हो गया है, जिसमें चीन बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देता है और उन्हें वित्तपोषित करता है। इससे गरीब सदस्य देश चीन के भारी कर्ज में डूब जाते हैं।
पनामा नहर पर भी गए रुबियो
शाम को अमेरिकी विदेश सचिव मार्को रुबियो ने प्रशासक रिकोर्टे वास्केज के साथ नहर का दौरा भी किया। रुबियो ने ताला पार किया और नियंत्रण टॉवर का दौरा किया। प्रशासक ने कहा कि जलमार्ग पनामा के हाथों में रहेगा और सभी देशों के लिए खुला रहेगा।
इससे पहले रुबियो ने शुक्रवार को ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ में एक लेख में कहा कि बड़े पैमाने पर अवैध प्रवासन, नशीले पदार्थ और क्यूबा, निकारागुआ और वेनेजुएला द्वारा अपनाई गई शत्रुतापूर्ण नीतियों से भारी नुकसान हुआ है। साथ ही पनामा नेहर के दोनों छो पर बंदरगाहों का संचालन चीन की कंपनी कर रही है, जिससे इस जलमार्ग पर चीन का दबाव बढ़ सकता है।
रुबियो ने कहा, हम इस मुद्दे पर बात करेंगे। राष्ट्रपति ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह पनामा नहर का फिर से संचालन करना चाहते हैं। पनामा के लोग स्पष्ट रूप से इस विचार से सहमत नहीं हैं। यह संदेश बहुत स्पष्ट रूप से पहुंचाया गया है। पनामा नहर को अमेरिका ने बनाया था। इसे 1999 में पनामा को सौंप दिया गया था और पनामा इसे फिर से अमेरिका को सौंपने के खिलाफ है।
ट्रंप ने कही थी कब्जा करने की बात
गौरतलब है कि अमेरिका के समुद्री व्यापार का बड़ा हिस्सा पनामा नहर के जरिए होता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद से ही पनामा नहर पर कब्जे की बात कर रहे हैं। ट्रंप ने आरोप लगाया कि चीन, पर्दे के पीछे से पनामा नहर का संचालन कर रहा है। ट्रंप ने सोमवार को शपथ ग्रहण समारोह के बाद अपने संबोधन में भी ये बात दोहराई। उन्होंने कहा कि ‘पनामा नहर हमने पनामा को उपहार में दी थी, लेकिन अब इसका संचालन चीन कर रहा है। हमने इसे चीन को नहीं दिया था और अब हम इसे वापस लेंगे।

पनामा नहर क्यों है अहम
पनामा नहर वैश्विक भू-राजनीति में अहम मानी जाती है। यह 82 किलोमीटर लंबी नहर अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ती है। पूरी दुनिया का छह फीसदी समुद्री व्यापार पनामा नहर से ही होता है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था के लिए भी पनामा नहर बेहद अहम है क्योंकि अभी न्यूयॉर्क से सैन फ्रांसिस्को जाने वाले मालवाहक जहाजों को पनामा नहर के जरिए दूरी 8370 किलोमीटर पड़ती है, लेकिन अगर पनामा नहर की बजाय पुराने मार्ग से माल भेजा जाए तो जहाजों को पूरे दक्षिण अमेरिकी देशों का चक्कर लगाने के बाद सैन फ्रांसिस्को जाना होगा और ये दूरी 22 हजार किलोमीटर से ज्यादा होगी।
अमेरिका का 14 फीसदी व्यापार पनामा नहर के जरिए ही होता है। कह सकते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए ही पनामा नहर लाइफलाइन का काम करती है। अमेरिका के साथ ही दक्षिण अमेरिकी देशों का बड़ी संख्या में आयात-निर्यात भी पनामा नहर के जरिए ही होता है। एशिया से अगर कैरेबियाई देश माल भेजना हो तो जहाज पनामा नहर से होकर ही गुजरते हैं। खुद पनामा की अर्थव्यवस्था इस नहर पर निर्भर है और पनामा की सरकार को पनामा के प्रबंधन से ही हर साल अरबों डॉलर की कमाई होती है। पनामा नहर पर कब्जा होने की स्थिति में पूरी दुनिया की आपूर्ति श्रृंख्ला बाधित होने का खतरा है।
पनामा नहर का निर्माण साल 1881 में फ्रांस ने शुरू किया था, लेकिन इसे साल 1914 में अमेरिका द्वारा इस नहर के निर्माण को पूरा किया गया। इसके बाद पनामा नहर पर अमेरिका का ही नियंत्रण रहा, लेकिन साल 1999 में अमेरिका ने पनामा नहर का नियंत्रण पनामा की सरकार को सौंप दिया। अब इसका प्रबंधन पनामा कैनाल अथॉरिटी द्वारा किया जाता है। पनामा नहर को इंजीनियरिंग का चमत्कार माना जाता है और इसे आधुनिक दुनिया के इंजीनियरिंग के सात अजूबों में से एक माना जाता है।
चीन की पनामा नहर पर नजर
पनामा नहर को लेकर पर्दे के पीछे चीन और अमेरिका के बीच तनातनी चल रही है। इसे लेकर दोनों देशों में तनाव बढ़ रहा है। चीन अपनी बढ़ती आर्थिक ताकत के जरिए पूरी दुनिया के जलमार्गों पर अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटा है। बीते दिनों अमेरिकी नौसेना के एक शीर्ष अधिकारी ने चिंता जाहिर की थी कि चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के जरिए लगातार पनामा नहर पर अपना राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव बढ़ा रहा है। पनामा में अमेरिका की राजदूत मार्ल कारमन अपोंटे ने भी चीन के पनामा नहर पर बढ़ते प्रभाव पर नाराजगी जाहिर की थी और कहा था कि अमेरिका नहीं चाहता कि ऐसी स्थिति पैदा हो, जिसमें पनामा को अमेरिका और चीन में से किसी एक को चुनने का विकल्प बचे।
पनामा नहर पर कैसे अपना प्रभाव बढ़ा रहा चीन
चीन अभी हांगकांग स्थित हचल्सन कंपनी के जरिए पनामा के बंदरगाह के पांच बड़े जोन को नियंत्रित करता है। इनमें से दो जोन्स पनामा नहर के मार्ग पर ही स्थित हैं। साथ ही चीनी कंपनियां एमाडोर पैसिफिक कोस्ट क्रूज टर्मिनल का काम कर रही है। चीन की ही एक कंपनी ने पनामा के अटलांटिक महासागर की तरफ सबसे बड़े बंदरगाह का नियंत्रण भी साल 2016 में खरीद लिया था। चीन की ही एक कंपनी पनामा नहर पर एक पुल का भी निर्माण कर रही है। इनके अलावा भी चीन की विभिन्न कंपनियां पनामा में बुनियादी ढांचे के विकास कार्यों में लगी हैं।