पांच साल में कितनी बदली बिहार की सियासत? नीतीश ने तीन बार ली शपथ; साथी बदले, पर सीएम की कुर्सी उनकी रही

पांच साल में कितनी बदली बिहार की सियासत? नीतीश ने तीन बार ली शपथ; साथी बदले, पर सीएम की कुर्सी उनकी रही

बिहार में बीते पांच वर्षों में क्या सियासी घटनाक्रम रहा है? राज्य में इस दौरान पार्टियों और सरकार में रहे गठबंधन का सीटों का गणित कैसा रहा? बिहार में कब-कब राजनीतिक ड्रामा देखने को मिला? 2020 के चुनावी नतीजे क्या रहे थे? अभी बिहार में विधानसभा की स्थिति क्या है?

बिहार में विधानसभा चुनाव का एलान होने में करीब छह महीने का समय बचा है। इस बीच राज्य में सियासी उथल-पुथल भी जारी है। हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राज्य में लंबे समय से खाली पड़े मंत्री पदों पर अपनी पार्टी के विधायकों को शपथ दिलाई। पार्टी ने इस दौरान जातीय समीकरणों का खासा ख्याल रखा। इसके साथ ही सत्ताधारी गठबंधन में शामिल दलों में चुनाव बाद मुख्यमंत्री कौन बनेगा इसको लेकर भी बयानबाजी शुरू हो चुकी है। नीतीश कुमार की सेहत भी अक्सर चर्चा में रहती है।  

हालांकि, अगर 2020 के बाद से बिहार की राजनीति को देखें तो यह काफी उठापटक वाली रही है। खासकर बिहार की सत्ता में बैठे गठबंधनों में तो लगातार बदलाव देखने को मिले। चौंकाने वाली बात यह है कि इन बदलावों के बावजूद राज्य में मुख्यमंत्री के पद में कोई बदलाव नहीं हुआ। 2020 में नीतीश कुमार की जेडीयू को राज्य की तीन मुख्य पार्टियों में सबसे कम सीटें मिलने के बावजूद, बीते पांच साल में वही सरकार के मुखिया रहे हैं। 

ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर बिहार में 2020 के चुनावी नतीजे क्या रहे थे? इसके बाद बीते पांच वर्षों में क्या सियासी घटनाक्रम रहा है? राज्य में इस दौरान पार्टियों और सरकार में रहे गठबंधन का सीटों का गणित कैसा रहा? बिहार में कब-कब राजनीतिक ड्रामा देखने को मिला? अभी बिहार में विधानसभा की स्थिति क्या है?

पहले जानें- बिहार में 2020 में क्या रहे थे चुनावी नतीजे?
बिहार में 2020 में हुए विधानसभा चुनाव 28 अक्तूबर 2020 से 7 नवंबर 2020 तक आयोजित किए गए थे। मतगणना 10 नवंबर को कराई गई। यह मुकाबला सत्तासीन एनडीए गठबंधन और महागठबंधन के बीच था। उस वक्त एनडीए में भाजपा, जदयू, हम और वीआईपी शामिल थीं, जबकि महागठबंधन में राजद, वाम दल और कांग्रेस शामिल थीं। 

243 विधानसभा सीटों वाले बिहार में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) को 125 सीटों पर जीत मिली थी। इसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सबसे ज्यादा 74 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को 43 सीटें मिली थीं। इसके अलावा विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को 4 सीटें हासिल हुई थीं। दूसरी तरफ महागठबंधन को बिहार में 110 सीटों पर जीत मिली थी। इनमें से राजद को सबसे ज्यादा 75 सीटें, कांग्रेस को 19 सीटें, वाम दलों (सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई-एमएल) को 16 सीटें मिली थीं। 

वहीं, अन्य दलों में लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा), जो कि अब एनडीए का हिस्सा है, को 1 सीट और एआईएमआईएम को पांच सीटें मिली थीं। बसपा को एक और 1 निर्दलीय प्रत्याशी की भी जीत हुई थी। 

नतीजों के बाद बिहार की सियासत कैसे बदली?
बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए की जीत में सबसे अहम भूमिका भाजपा की रही। इसके बावजूद पार्टी ने मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा नहीं किया। 43 सीटें होने के बावजूद जदयू का मुख्यमंत्री पद पर दावा बरकरार रहा और नीतीश कुमार ने एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, इस बार कैबिनेट में भाजपा का बोलबाला रहा। पार्टी को जदयू से ज्यादा मंत्रीपद मिले। साथ ही उसने दो उपमुख्यमंत्री भी नियुक्त किए।   

चुनाव के दो साल के अंदर हुआ सियासी ड्रामा
बिहार में एनडीए गठबंधन का सरकार में साथ दो साल से भी कम समय के लिए चला। यह राजनीतिक गठबंधन तब समाप्त हुआ, जब नीतीश कुमार ने अगस्त 2022 में भाजपा पर अपनी पार्टी जदयू को तोड़ने और खत्म करने की कोशिश का आरोप लगाया। इसके बाद उन्होंने राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हाथ थामा और बिहार में नए स्वरूप वाली सरकार बनाई। एक बार फिर नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 

बताया जाता है कि नीतीश के एनडीए छोड़ने की मुख्य वजह जदयू का सिकुड़ता वोटर बेस था। दरअसल, 2015 में जदयू को 71 सीटें मिली थीं, जो कि 2020 में घटकर 43 पर पहुंच गई थीं। वहीं, भाजपा की सीटें 53 से बढ़कर 74 पर पहुंच गई थी। नीतीश की पार्टी के नेताओं का कहना था कि चिराग पासवान और उनकी लोकजनशक्ति पार्टी को जदयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारने से न रोककर भाजपा ने ही गठबंधन की अपनी साथी पार्टी की ताकत कम करने का काम किया। जदयू का मानना था कि भाजपा की शह पर लोजपा ने चुनाव में उसके वोट काटे, जिसका असर उसकी सीटों पर पड़ा। 

इसके अलावा नीतीश के दोनों डिप्टी सीएम- रेणू देवी और तारकिशोर प्रसाद को लेकर असहज महसूस करने की खबरें भी आने लगी थीं। दरअसल, लंबे समय तक सुशील मोदी उनके साथ उपमुख्यमंत्री रहे थे और अब भाजपा ने दो नए नेताओं को उनके साथ लगाया था। इतना ही नहीं, नीतीश के एनडीए से अलग होने का एक और कारण जदयू के तत्कालीन नेता और राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह थे, जो कि केंद्र सरकार में मंत्री थे। अटकलें थीं कि भाजपा उन्हें अपने साथ मिलाकर जदयू को दो हिस्सों में बांटना चाहती थी। ऐसे में नीतीश ने अलग राह चुन ली। 

महागठबंधन का हाथ थामा, बदले समीकरणों के साथ सत्ता संभाली
नीतीश कुमार ने इसके बाद महागठबंधन का हाथ थामा। जब जदयू ने राजद और कांग्रेस का हाथ थामा, तब इस गठबंधन के विधायकों की संख्या 160 पहुंच गई। दरअसल, कुछ उपचुनावों और बसपा-एआईएमआईएम और वीआईपी जैसी पार्टियों के विधायकों के अलग-अलग दलों में शामिल हो जाने से 2022 तक विधानसभा में सीटों के आंकड़े बदल गए। 

इसके अलावा 2022 में जब नीतीश ने गठबंधन बदला, तब राजद की 79 और जदयू की 45 सीटों के अलावा कांग्रेस की 19 और वाम दलों की 16 सीटें शामिल रहीं। नीतीश के साथ रही जीतनराम मांझी की हम के भी चार विधायक महागठबंधन के साथ ही चले गए। इसके अलावा एक निर्दलीय ने भी नीतीश को ही समर्थन दे दिया। इस तरह नीतीश 160 विधायकों के समर्थन से फिर सरकार बनाने में सफल रहे। उन्होंने 10 अगस्त 2022 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 

2024 में क्यों एनडीए में लौटे नीतीश?
2022 में जब नीतीश ने एनडीए छोड़ा तो उनका अपने पुराने गठबंधन से विवाद काफी बढ़ चुका था। कुछ नेताओं ने तो यहां तक बयान दे दिया कि नीतीश के साथ फिर गठबंधन नहीं होगा। इस बीच नीतीश कुमार को केंद्रीय राजनीति में सक्रिय किया जाने लगा। महागठबंधन के जरिए नीतीश इंडिया गठबंधन को खड़ा करने वाले चेहरों में शामिल रहे। हालांकि, लोकसभा चुनाव करीब आते-आते भी जब विपक्षी गठबंधन की तरफ से ‘इंडिया’ के प्रमुख और संयोजकों को लेकर फैसला न हुआ तो नीतीश इस राजनीतिक सेटअप से दूर होने लगे। इतना ही नहीं अलग-अलग मुद्दों पर तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के भी कांग्रेस के साथ न आने का भी विपक्षी गठबंधन को लगातार नुकसान हो रहा था। ऐसे में नीतीश ने गठबंधन से पूरी तरह दूरी बना ली। 

बताया जाता है कि जदयू के कई नेता इस बीच भाजपा के साथ लौटने की बात कहने लगे। इनमें राजीव रंजन सिंह जैसे बड़े नेता भी शामिल रहे। दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू को एनडीए में रहने का फायदा हुआ था और वह जिन 17 सीटों में लड़ी थी, उसमें 16 सीटों पर जीत हासिल की थी। ऐसे में नीतीश के करीबी नेताओं में एक बार फिर एनडीए में लौटने की चर्चाएं तेज हो गईं। 

दूसरी तरफ बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की बढ़ती लोकप्रियता और नौकरी से जुड़े वादों को राजद के वादे बताकर निभाने की बातें भी सीएम नीतीश कुमार को रास नहीं आईं। आखिरकार नीतीश कुमार ने 17 महीने बाद महागठबंधन का साथ छोड़ दिया। 

एनडीए का हिस्सा बने नीतीश, क्या रहा सीटों का गणित?
राजभवन में 28 जनवरी को सुबह 11 बजे जब सीएम नीतीश कुमार ने महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था, उस समय उनके पास भाजपा का समर्थन नहीं था। उनके पास उनकी पार्टी जनता दल यूनाईटेड के महज 45 विधायक थे। उनके इस्तीफा देने के बाद भाजपा ने जदयू को सरकार बनाने के लिए अपने 78 विधायकों का समर्थन दिया। इसके साथ ही राजग के घटक हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के चार विधायकों का भी समर्थन मिल गया। इकलौते निर्दलीय ने पहले की तरह नीतीश कुमार के प्रति भरोसा जताया। इस तरह नीतीश कुमार ने राजभवन में कुल 128 विधायकों का समर्थन दिखाया, जिसके आधार पर उन्हें नए मंत्रिमंडल के साथ शपथ दिलाई गई।

दूसरी तरफ महागठबंधन की ताकत 114 विधायकों तक सिमट कर रही थी। सबसे बड़ी पार्टी राजद के पास अपने 79 विधायक थे। उसके बाद कांग्रेस के 19 और वामदलों के 16 विधायक। इस तरह कुल 114 हुए। इनके अलावा, असद्दुद्दीन  ओवैसी की पार्टी के इकलौते विधायक अलग ही रहे। 

उपचुनाव- विधायकों के पार्टी बदलने से बदले सीटों के आंकड़े
भाजपा ने 2020 के चुनाव में 74 सीटें जीती थीं। फिर उसने उप चुनाव में राजद से कुढ़नी विधानसभा सीट छीन ली। तब भी भाजपा की संख्या 75 होती है, लेकिन उसने विकासशील इंसान पार्टी के तीनों विधायकों को अपनी पार्टी में मिला लिया। तीन ही विधायक थे और एक साथ भाजपा में आ गए, इसलिए दल-बदल कानून लागू नहीं हुआ। इससे भाजपा के विधायकों की संख्या 78 थी। अब उपचुनाव 2024 में दो सीटें भाजपा ने अपने खाते में की। रामगढ़ सीट राजद और तरारी भाकपा-माले के पास थी। दोनों के विधायक सांसद बन चुके हैं। इस तरह भाजपा अब कागज पर 80 विधायकों वाली पार्टी है।

1. जदयू ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 43 सीटें जीती थीं। इसके बाद जदयू ने बहुजन समाज पार्टी के एक और लोजपा के एक विधायक को अपने साथ कर लिया। इस तरह उसके पास 45 विधायक हो गए थे। इस साल फरवरी में फ्लोर टेस्ट के कुछ समय बाद लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए रूपौली की जदयू विधायक बीमा भारती ने इस्तीफा देकर राजद का दामन थाम लिया। उससे जदयू के विधायकों की संख्या 44 हो गई थी। बीमा भारती की छोड़ी रूपौली सीट जदयू के पास नहीं रही। वहां से निर्दलीय शंकर सिंह जीते, जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हैं। वह जदयू में नहीं, लेकिन सरकार के साथ हैं। अब उप चुनाव 2024 में बेलागंज सीट राजद से छीनकर जदयू ने अपनी संख्या 45 कर ली हैं।

2. राजद ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 75 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उसमें से वह अपनी कुढ़नी सीट उप चुनाव में हार गई। वीआईपी के विधायक के निधन से खाली हुई बोचहां सीट उप चुनाव में राजद के पास आ गई। इस तरह उसके विधायकों की संख्या वापस 75 हुई। इधर, राजद ने असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के पांच में से चार विधायकों को अपने साथ कर लिया। इस तरह राजद की संख्या 79 थी। अब उपचुनाव 2024 में दो सीटें हारने से राजद विधायकों की कागज पर संख्या 77 रह गई। यह दो सीटें बेलागंज और रामगढ़ विधायक के सांसद बनने से खाली हुई थीं।

3. भाकपा माले ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 12 सीटें जीती थीं। उनमें से एक मनोज मंजिल की सदस्यता रद्द की गई थी। उनकी सीट के लिए उप चुनाव हुआ तो शिव प्रकाश रंजन ने भाकपा-माले की यह सीट कायम रखी। यह संख्या 12 ही थी, लेकिन अब तरारी सीट के विधायक सुदामा प्रसाद जब सांसद बने तो उनकी छोड़ी सीट को भाजपा ने अपने खाते में कर लिया। इस तरह भाकपा-माले की संख्या 11 हो गई है।

4. जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा- सेक्युलर के 2020 में चार विधायक जीते थे। उनमें से एक वह खुद सांसद बन गए, हालांकि इमामगंज की उनकी विधानसभा सीट बहू दीपा मांझी ने वापस जीत ली। इस तरह विधानसभा में हम-से के चार विधायक ही अब भी हैं।

5. असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी के पांच विधायक जीते थे, जिनमें से चार राजद के साथ जाने के बाद अब प्रदेश अध्यक्ष इकलौते AIMIM विधायक के रूप में विधानसभा में हैं। 

6. मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के चार विधायक 2020 के चुनाव में जीते थे। एक का निधन होने से खाली हुई सीट राजद के खाते में चली गई और शेष तीन भाजपा के साथ हो लिए। इस तरह इस VIP की सदस्यता शून्य हो गई है।

7. विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस के 19 विधायक जीते थे, कागज पर आज भी उतने ही हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के 2 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के दो विधायक जैसे थे, अब भी हैं। 

8. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में एक निर्दलीय जीते थे- सुमित सिंह। फिर रूपौली के उप चुनाव में बीमा भारती की सीट निर्दलीय शंकर सिंह ने हासिल कर ली। यह दोनों निर्दलीय हैं। इनमें सुमित सिंह सरकार के साथ होकर मंत्री हैं, जबकि शंकर सिंह बाहर से साथ हैं।

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