अदालत की दो टूक- भाषा आपस में बैर नहीं सिखाती, करीब लाती है; उर्दू गंगा-जमुनी तहजीब का नमूना

अदालत की दो टूक- भाषा आपस में बैर नहीं सिखाती, करीब लाती है; उर्दू गंगा-जमुनी तहजीब का नमूना

सुप्रीम कोर्ट में एक अहम मुकदमे की सुनवाई के दौरान दो जजों की खंडपीठ ने कहा, भाषा आपस में बैर रखना नहीं सिखाती। यह तो करीब लाती है। तमिलनाडु से जुड़े इस मामले में शीर्ष अदालत ने साइन बोर्ड पर मातृभाषा के साथ अन्य भाषा के प्रयोग पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने साफ किया कि उर्दू गंगा-जमुनी तहजीब का नमूना है।

तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक के हिंदी विरोध के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भाषा धर्म नहीं है और न ही किसी धर्म का प्रतिनिधित्व करती है। भाषा विचारों के आदान-प्रदान का एक माध्यम है जो विभिन्न विचारों और विश्वासों वाले लोगों को करीब लाती है। यह उनके विभाजन का कारण नहीं बनना चाहिए।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के अकोला जिले के पातुर नगर परिषद की नई इमारत के साइनबोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी थी। नगर परिषद की पूर्व सदस्य वर्षा ताई की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि महाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण (राजभाषा) अधिनियम, 2022 और अन्य कानूनों के अनुसार सरकारी कामकाज की भाषा माराठी है, इसलिए किसी भी तरह से उर्दू का इस्तेमाल जायज नहीं है। 

पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया। पीठ की तरफ से फैसला लिखते हुए जस्टिस धूलिया ने ब्रिटेन के एंग्लो अल्जीरियाई लेखक मौलूद बेन्जादी को कोट करते हुए कहा, जब आप कोई भाषा सीखते हैं, तो आप सिर्फ नई भाषा बोलना और लिखना ही नहीं सीखते। 

आप खुले विचारों वाले, उदार, सहिष्णु, दयालु और सभी मानव जाति के प्रति विचारशील होना भी सीखते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी अवधारणाएं स्पष्ट होनी चाहिए। भाषा संस्कृति है। भाषा किसी समुदाय और उसके लोगों की सभ्यता की यात्रा को मापने का पैमाना है।

गलत धारणाओं को सच्चाई से परखें
पीठ ने कहा कि हमारी गलत धारणाओं, शायद किसी भाषा के प्रति हमारे पूर्वाग्रहों को साहसपूर्वक और सच्चाई से वास्तविकता के सामने परखा जाना चाहिए, जो हमारे देश की महान विविधता है। हमारी ताकत कभी हमारी कमजोरी नहीं हो सकती। पीठ ने कहा कि अगर उर्दू को अपने लिए बोलना होता तो वह कहती…

  • उर्दू है मेरा नाम मैं ‘खुसरव’ की पहेली, क्यूं मुझको बनाते हो ता.अस्सुब का निशाना
  • मैंने तो कभी हद को मुसलमान नहीं माना, देखा था कभी मैंने भी खुशियों का जमाना
  • अपने ही वतन में हूं मगर आज अकेली, उर्दू है मेरा नाम में ‘खुसरव’ की पहेली
  • उर्दू मेरा नाम है, पूर्वाग्रहों के लिए मुझे मत पकड़ो
  • मैंने अपने आप को कभी भी नहीं माना मुसलमान, मैंने भी खुशनुमा दिन देखे हैं
  • आज मैं अपने वतन में एक अजनबी की तरह महसूस करती हूं, उर्दू मेरा नाम है, मैं ‘खुसरव’ की पहेली हूं

हमें विविधता का सम्मान करना चाहिए
जस्टिस धूलिया ने आगे कहा, उर्दू गंगा-जमुनी तहजीब या हिंदुस्तानी तहजीब का बेहतरीन नमूना है, जो उत्तरी और मध्य भारत के मैदानी इलाकों की मिश्रित सांस्कृतिक प्रकृति है। लेकिन भाषा के सीखने का साधन बनने से पहले, इसका सबसे पहला और प्राथमिक उद्देश्य हमेशा संचार ही रहेगा। उन्होंने कहा कि हमें अपनी विविधता का सम्मान करना चाहिए और उसमें आनंद लेना चाहिए, जिसमें हमारी कई भाषाएं शामिल हैं। भारत में सौ से ज्यादा प्रमुख भाषाएं हैं। इसके अलावा, बोलियां या मातृभाषाएं भी सैकड़ों में हैं।

administrator

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *