रिपोर्ट में खुलासा: बाजार में तीन दर्जन प्रतिबंधित दवाएं, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा

रिपोर्ट में खुलासा: बाजार में तीन दर्जन प्रतिबंधित दवाएं, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा

देश के कई राज्यों ने बिना वैज्ञानिक जांच के फार्मा कंपनियों को प्रतिबंधित एफडीसी दवाओं के लाइसेंस दे दिए, जिससे करीब 35 से ज्यादा दवाएं बाजार में पहुंच गईं। ड्रग कंट्रोलर ने इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए गंभीर बताया और सभी राज्यों को लाइसेंस प्रक्रिया की समीक्षा के निर्देश दिए।

देश के अलग-अलग हिस्सों में बिना जांच और नियम की अनदेखी कर प्रतिबंधित दवाओं के लाइसेंस जारी कर दिए गए। इतना ही नहीं देश के कई राज्यों ने फार्मा कंपनियों को लाइसेंस देने से पहले इन दवाओं की सुरक्षा और प्रभाव के बारे में जानना तक जरूरी नहीं समझा। इसका खामियाजा यह रहा कि करीब तीन दर्जन से ज्यादा तरह की दवाएं भारतीय बाजार में पहुंच गईं।

इन दवाओं का इस्तेमाल बुखार, मधुमेह, बीपी, कोलेस्ट्रॉल और फैटी लीवर जैसी परेशानियों के लिए किया जा रहा है जबकि ये स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा भी बन सकती हैं। यह पूरा मामला फिक्स डोज कॉम्बिनेशन यानी निश्चित खुराक संयोजन (एफडीसी) दवाओं से जुड़ा है। जिन दवाओं को दो या उससे अधिक सक्रिय दवाओं को मिश्रित करके बनाया जाता है वह एफडीसी की श्रेणी में आती हैं। यह खुलासा केंद्रीय एजेंसी की एक जांच में हुआ है जिसमें फार्मा कंपनियों का मानना है कि उन्हें यह लाइसेंस राज्य के प्राधिकरण से प्राप्त हुआ है। इसलिए प्रतिबंधित दवाओं का उत्पादन करने पर उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। कानूनी तौर पर फार्मा कंपनियों का यह जवाब उनके पक्ष में है लेकिन भारत के दवा नियामक संगठनों की इस लापरवाही पर भारत सरकार के ड्रग कंट्रोलर डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने नाराजगी जताई है। बीते 11 अप्रैल को जारी आदेश में डॉ. रघुवंशी ने बिना जांच दवाओं का लाइसेंस बांटने को सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताया।

सच्चाई सामने आते ही हैरान रह गई केंद्रीय एजेंसी
नई दिल्ली स्थित केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि निर्माता फार्मा कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया लेकिन कंपनियों ने अपने जवाब में कहा कि उन्हें ये लाइसेंस संबंधित राज्य के प्राधिकरण ने दिया है। इसलिए उन्होंने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया। इस तर्क ने केंद्रीय एजेंसी के जहन में कई तरह के सवाल खड़े किए जिसके बाद जांच अधिकारियों को एक के बाद एक करीब 12 से ज्यादा राज्यों के बारे में पता चला जो उनके लिए हैरानी भरा था, क्योंकि नियमों में स्पष्ट तौर पर इन दवाओं के लाइसेंस नहीं देने का प्रावधान है।

मरीजों की जान से खिलवाड़
ड्रग कंट्रोलर डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने आदेश में लिखा है कि वैज्ञानिक सत्यापन के बिना इन दवाओं का मरीजों पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है। इसके अलावा ये दवाएं परस्पर क्रिया या फिर मरीजों को अन्य स्वास्थ्य संबंधी खतरे पैदा कर सकती हैं। उन्होंने सभी राज्यों के औषधि नियंत्रकों से कहा है कि वे ऐसे एफडीसी के लिए अपने लाइसेंस प्रक्रिया की समीक्षा करें और नियमों के प्रावधानों का कड़ाई से पालन करने पर जोर दें जिससे देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए।

35 से ज्यादा दवाओं के लाइसेंस निरस्त
नई दिल्ली स्थित केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने सभी राज्यों के लिए जारी आदेश के साथ दवाओं की एक सूची भी भेजी है जिसमें तकरीबन 35 तरह की निश्चित खुराक संयोजन (एफडीसी) दवाएं हैं जिनके लाइसेंस फार्मा कंपनियों को सौंप दिए गए। केंद्रीय एजेंसी ने निर्माता कंपनियों से तत्काल लाइसेंस सरेंडर करने के लिए कहा है।

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