वक्फ कानून के खिलाफ दायर दर्जनों याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा। केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर रखी है। सरकार की ओर से कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आदेश पारित करने से पहले उसका पक्ष सुनने के लिए कैविएट लगाई है।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ सुनवाई करेगी। संशोधित कानून का मकसद वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को नियंत्रित करना है। इस कानून का बचाव करने के लिए छह भाजपा शासित राज्यों ने भी पक्षकार बनने की मांग की है।
सुनवाई से पहले मंगलवार को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने नए वक्फ कानून को कानूनी चुनौती का जिक्र करते हुए कहा कि मुझे विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट विधायी मामले में दखल नहीं देगा। संविधान में शक्तियों का विभाजन अच्छी तरह से परिभाषित है। हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। अगर कल सरकार न्यायपालिका में हस्तक्षेप करती है, तो अच्छा नहीं होगा।
आइए सुनवाई से पहले जानतें हैं कानून, इसे चुनौती क्यों दी गई, किस-किस ने याचिका लगाई और सरकार का क्या तर्क?
1. लोकसभा और राज्यसभा में लंबी बहस के बाद इस महीने की शुरुआत में संसद ने वक्फ संशोधन विधेयक पारित किया था। अब भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की तीन न्यायाधीशों की पीठ दोपहर 2 बजे इस पर सुनवाई करेगी।
2. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि वह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करेगा। हालांकि, संविधान से जुड़े मुद्दों पर अंतिम मध्यस्थ के रूप में वह याचिकाकर्ताओं को सुनने के लिए सहमत भी हुआ। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि संशोधित कानून समानता के अधिकार और धार्मिक प्रथाओं को अपनाने के अधिकार सहित कई मौलिक अधिकारों का हनन करता है।
3. कानून को चुनौती देने वालों में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, आम आदमी पार्टी, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस, सीपीआई के नेताओं समेत कई धार्मिक संगठन, जमीयत उलेमा हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड शामिल हैं। कई एनजीओ की ओर से भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई है।
4. भाजपा शासित मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, असम, महाराष्ट्र और उत्तराखंड ने भी सुप्रीम कोर्ट में आवेदन लगाया है। उन्होंने सुनवाई में खुद को भी शामिल किए जाने की मांग की है।
5. कुछ याचिकाओं में इस कानून को असंवैधानिक बताया गया है। उनमें कानून को रद्द करने की मांग की गई है। कुछ याचिकाओं में इसके क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की गई है। इसे मनमाना और मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण भी बताया गया है।
6. अपनी याचिका में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि संशोधित कानून वक्फ को दिए गए संरक्षण को खत्म कर देता है। उन्होंने दावा किया कि वक्फ संपत्तियों को दी गई सुरक्षा को कम करना और अन्य धर्मों के लिए इसे बरकरार रखना भेदभावपूर्ण है।
7. ‘आप’ के अमानतुल्ला खान ने याचिका में तर्क दिया कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और इसका धार्मिक संपत्ति प्रशासन के उद्देश्य से कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है।
8. सरकार का कहना है कि अधिनियम संपत्ति और उसके प्रबंधन के बारे में है, धर्म के बारे में नहीं। वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हैं और उनकी आय से गरीब मुसलमानों या महिलाओं और बच्चों को कोई मदद नहीं मिलती है, जिसे संशोधित कानून ठीक कर देगा।
9. सरकार का तर्क है कि विधेयक (अब कानून) को लोगों के एक बड़े वर्ग से सलाह-मशविरा करने के बाद ही तैयार किया गया है। इसे गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों का समर्थन भी है। सरकार ने दावा किया है कि यह विधेयक संयुक्त संसदीय समिति की जांच से गुजरा है। सदस्यों की ओर से सुझाए गए कई संशोधनों को भी इसमें शामिल किया गया है।
10. संशोधित कानून और उससे पहले विधेयक के खिलाफ देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए हैं। इनमें से सबसे बुरा हाल बंगाल का है, जहां विरोध प्रदर्शनों के दौरान भड़की हिंसा में तीन लोगों की मौत हो गई और कई लोग बेघर हो गए। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि उनकी सरकार संशोधित वक्फ कानून को लागू नहीं होने देंगी।