आरव कहते हैं, “रोबोटिक्स सिर्फ तकनीक नहीं, यह समस्या सुलझाने और रचनात्मक सोच का माध्यम है।” उनके अनुसार शिक्षक भी इस ट्रेनिंग को उत्साह से अपना रहे हैं और इसे अपनी कक्षाओं में शामिल कर रहे हैं।
मुंबई के एक 17 वर्षीय किशोर आरव कौल ने जम्मू-कश्मीर के छात्रों में रोबोटिक्स और कोडिंग के प्रति दिलचस्पी जगाने के लिए एक अनोखी पहल शुरू की है जिसका नाम है ‘ज़ुल’ (Zul)। यह एक STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) पर आधारित परियोजना है, जिसका उद्देश्य युवाओं को तकनीकी शिक्षा से जोड़ना है।
धीरूभाई अंबानी इंटरनेशनल स्कूल, मुंबई के छात्र आरव ने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 9वीं और 10वीं कक्षा के छात्रों को माइक्रोकंट्रोलर प्रोग्रामिंग जैसी व्यावहारिक तकनीकों से लैस करने के लिए की। उनका कहना है, “यह पहल इनोवेशन को प्रोत्साहित करने और क्षेत्र में तकनीकी विकास को बढ़ावा देने के लिए है, ताकि युवा पीढ़ी भविष्य के लिए तैयार हो सके।”
राज्यपाल ने की सराहना
आरव ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से भी मुलाकात की, जिन्होंने इस प्रयास की सराहना की और इसे राज्य में तकनीकी बदलाव और युवा सशक्तिकरण के लक्ष्य से जुड़ा बताया। आरव कहते हैं, “रोबोटिक्स सिर्फ तकनीक नहीं, यह समस्या सुलझाने और रचनात्मक सोच का माध्यम है।” उनके अनुसार शिक्षक भी इस ट्रेनिंग को उत्साह से अपना रहे हैं और इसे अपनी कक्षाओं में शामिल कर रहे हैं।
आपको बताते चलें कि आरव एक अंतरराष्ट्रीय रोबोटिक्स चैंपियन हैं और उन्होंने FIRST, Robotex और MakeX जैसी वैश्विक प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। उनके पिता जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं, इसलिए यह पहल उनके लिए भावनात्मक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
वे बताते हैं, “मैंने 15 सरकारी और निजी स्कूलों के शिक्षकों को इन-पर्सन और ऑनलाइन माध्यम से प्रशिक्षण दिया है, ताकि वे रोबोटिक्स को प्रभावी ढंग से पढ़ा सकें।” साथ ही, छात्रों को मुफ्त Arduino किट्स भी बांटी गईं, ताकि वे वास्तविक मशीनें बनाना सीख सकें। इस पहल से अब तक 1000 से अधिक छात्र लाभान्वित हो चुके हैं।
मार्च और अप्रैल महीने में यह कार्यक्रम पूरे जोर-शोर से चल रहा है, जिसमें बुनियादी सर्किट्री, सेंसर्स, कोडिंग और प्रोजेक्ट डिजाइन तक की जानकारी दी जा रही है। महीने के अंत में एक फाइनल शोकेस होगा, जहां छात्र अपने बनाए इनोवेटिव प्रोजेक्ट्स का प्रदर्शन करेंगे।
अनुपमा शर्मा (जम्मू संस्कृति स्कूल) ने कहा: “हमें ऐसी और पहलों की आवश्यकता है जो हमारे तकनीकी कौशल को बढ़ाएं और छात्रों को बेहतर ढंग से जोड़ सकें।”
मीनाक्षी गुप्ता (डीपीएस): “सर्किट बनाना मेरे लिए बहुत रोमांचक अनुभव था। इस प्रोजेक्ट ने छात्रों को सीखने का एक अनूठा तरीका दिया है।”
स्कूलों की भागीदारी और आगे की योजना
इस प्रोजेक्ट की नींव फरवरी में रखी गई थी, जब आरव ने जम्मू-कश्मीर के कई स्कूलों से संपर्क किया। स्कूलों ने इस अवसर को उत्साहपूर्वक स्वीकार किया और उन्हें किट्स, सिलेबस प्लान और लगातार मार्गदर्शन मिला। यह पहल छात्रों को सैद्धांतिक ज्ञान को प्रयोगात्मक अनुभव से जोड़ने का मौका दे रही है।
आरव इस पहल को और आगे बढ़ाने के लिए स्कूलों, टेक-प्रेमी शिक्षकों और समाज के सहयोगियों से सहयोग की अपील कर रहे हैं। वे लैपटॉप, समर्पित लर्निंग स्पेस और शोकेस के प्रचार में मदद की भी मांग कर रहे हैं।