इस हफ्ते खबरों के खिलाड़ी में चर्चा हुई बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर, जो कि पटना में एक कार्यक्रम में राष्ट्रगान के दौरान अपनी हरकतों की वजह से घिर गए। विपक्षी दलों ने नीतीश पर जमकर निशाना साधा। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी, समीर चौगांवकर और हर्षवर्धन त्रिपाठी मौजूद रहे।
बिहार के लिए ये चुनाव का साल है। चुनाव से पहले चुनावी माहौल गर्म है। हर राजनीतिक दल अपने समीकरण साधने में लगा है। उसी के हिसाब से बयानबाजी हो रही है। इसी हफ्ते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक वीडियो वायरल हुआ। पटना में एक कार्यक्रम में राष्ट्रगान के दौरान नीतीश की हरकत पर सियासी भूचाल आ गया। इसी मुद्दे पर इस हफ्ते खबरों के खिलाड़ी में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी, समीर चौगांवकर और हर्षवर्धन त्रिपाठी मौजूद रहे।
समीर चौगांवकर: नीतीश कुमार का जो वीडियो आया है उसके पहले से ही उनके स्वास्थ्य को लेकर चर्चा हो रही है। जब वो राजद के साथ सरकार में थे, तब भी उन्होंने महिलाओं पर जो अभद्र टिप्पणी की थी। उस वक्त भाजपा ने भी वैसी ही बातें कहीं थी जैसी अब राजद कह रही है। इसके बाद भी नीतीश बिहार की राजनीति में ऐसे खिलाड़ी रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि, उनके स्वास्थ्य को देखते हुए भाजपा के लिए मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार का एक-एक दिन चुनौतीपूर्ण है। मुझे लगता है कि यह चर्चा बिहार की राजनीति में भी चल रही है कि कल को नीतीश कुमार ऐसा कुछ न कर दें जिसे संभालना मुश्किल होगा। मुझे लगता है कि चुनाव से पहले कोई नया समीकरण निकाला जाएगा। कुल मिलाकर नीतीश कुमार पूरी तरह अस्वस्थ्य हो चुके हैं और उनका इस्तीफा ले लिया जाना चाहिए।
विनोद अग्निहोत्री: पिछले 20-22 साल से बिहार में नीतीश कुमार की बहार है। चाहे वो किधर भी रहें। नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में ऐसा बांट है कि वो जिस पलड़े में आता है वो पलड़ा भारी हो जाता है। भाजपा चाहती है कि नीतीश कुमार नाम के लिए ही सही, लेकिन वो हमारे पाले में ही रहें। इसलिए वो सबकुछ बर्दाश्त कर रही है। भाजपा नीतीश के सहारे पूरे बिहार में अपनी सरकार बनाना चाह रही है। नीतीश कुमार को लेकर जो खबरें आती हैं वो चिंता का सबब है।
हर्षवर्धन त्रिपाठी: भाजपा के लिए यह कतई अच्छी स्थिति नहीं होगी कि जो उसके साथ है वो ही उसके लिए मुसीबत बन जाए। नीतीश जी विशुद्ध रूप से अभी दया के पात्र हैं, लेकिन वो दया के पात्र हैं तो इसका यह मतलब नहीं है कि बिहार को दया का पात्र बना दिया जाए। इस पूरे मामले में जवाबदेही किसकी होगी तो पहला नाम है उनके बेटे निशांत और दूसरा भाजपा जो कि सहयोगी हैं।
पूर्णिमा त्रिपाठी: नीतीश कुमार अपनी गद्दी छोड़ने को तैयार नहीं है। उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति खराब है। लोकसभा चुनाव में उनको नुकसान नहीं हुआ, क्योंकि उस वक्त चेहरा प्रधानमंत्री मोदी थे, लेकिन राज्य के चुनाव में अगर वो चेहरा होंगे तो इसका नुकसान भाजपा को भी होगा। वीडियो के हिसाब से तो उस मानसिक स्थिति का व्यक्ति मुख्यमंत्री होना ही नहीं चाहिए।
रामकृपाल सिंह: नीतीश कुमार के प्रति एक सहानभूति है। मैं 50 साल से नीतीश कुमार को देख रहा हूं। नीतीश का 50 साल का कद और लालू प्रसाद का 50 साल का कद दोनों देखेंगे तो नीतीश का कद बहुत भारी दिखेगा। कोई सोचेगा कि इस घटना का फायदा उठा लेंगे तो वह गलत होगा। अब जो उनकी स्थिति है ये नीतीश कुमार को भी मालूम है। सबके बेटे कहां से कहां पहुंच गए। उनका बेटा तो कभी उन्होंने नाम भी नहीं लिया है। अगर वो राजनीति में आता है तो वो अलग बात होगी। भाजपा की दीर्घकालिक राजनीति के लिए यह जरूरी है कि जदयू का एक अलग से अस्तित्व रहे। जैसे ही जदयू भाजपा का हिस्सा बनेगी तो उससे भाजपा को नुकसान होगा।